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Gita Mahatmya by Shri Adi Shankaracharya


श्री आदिशंकराचार्य द्वारा वर्णित श्रीमद भगवद-गीता की महिमा।

गीता शास्त्रं इदं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः पुमान् ।
विष्णोः पादं अवाप्नोति भय शोकादि वर्जितः ।।

भगवद्गीता दिव्य साहित्य है। जो इसे ध्यानपूर्वक पढ़ता है और इसके उपदेशों का पालन करता है, वह भगवान् विष्णु का आश्रय प्राप्त करता है जो कि समस्त भय तथा चिंताओं से मुक्त है।(गीता माहात्म्य 1)

गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च I
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च II

“यदि कोई भगवद्गीता को निष्ठा तथा गम्भीरता के साथ पढ़ता है तो भगवान् की कृपा से उसके सारे पूर्व दुष्कर्मों के फ़लों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।” (गीता महात्म्य २)

मलिनेमोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने ।
सकृद्गीतामृतस्नानं संसारमलनाशनम् ॥

“मनुष्य जल में स्नान करके नित्य अपने को स्वच्छ कर सकता है, लेकिन यदि कोई भगवद्गीता-रूपी पवित्र गंगा-जल में एक बार भी स्नान कर ले तो वह भौतिक जीवन (भवसागर) की मलिनता से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाता है ।” (गीता महात्म्य ३)

गीता सुगीताकर्तव्या किमन्यौ: शास्त्रविस्तरैः ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥

चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्कता नहीं रहती । केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए । केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथो का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है।”(गीता महात्मय ४)

भारतामृतसर्वस्वं विष्णुवक्त्राद्विनिः सृतम ।
गीता- गङ्गोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥

“जो गंगाजल पीता है, वह मुक्ति प्राप्त करता है । अतएव उसके लिए क्या कहा जाय जो भगवद्गीता का अमृत पान करता हो? भगवद्गीता महाभारत का अमृत है औरइसे भगवान् कृष्ण (मूल विष्णु) ने स्वयं सुनाया है ।” (गीता महात्म्य ५)

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधिभोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ।।

“यह गीतोपनीषद, भगवद्गीता, जो समस्त उपनिषदों का सार है, गाय के तुल्य है और ग्वालबाल के रूप में विख्यात भगवान् कृष्ण इस गाय को दुह रहे है । अर्जुन बछड़े के समान है, और सारे विद्वान् तथा शुद्ध भक्त भगवद्गीताके अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं ।” (गीता महात्म्य ६)

एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् ।
एको देवो देवकीपुत्र एव ।।
एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि।
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ।।

“आज के युग में लोग एक शास्त्र, एक ईश्र्वर, एक धर्म तथा एक वृति के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं। अतएव सारे विश्र्व के लिए केवल एक शास्त्र भगवद्गीता हो। सारे विश्र्व के लिए एक इश्वर हो-देवकीपुत्र श्रीकृष्ण । एक मन्त्र, एक प्रार्थना हो- उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे। केवल एक ही कार्य हो – भगवान् की सेवा ।” (गीता महात्म्य ७)  

The glories of Shrimad Bhagavad-gita by Shri Adi Shankaracharya

Gita-shastramidampunyam yah pathetprayatahpuman
Vishnohpadamavapnoti bhaya-shokadi-varjitah

 If one properly follows the instructions of Bhagavad-gita, one can be freed from all miseries and anxieties in this life, and one will surely attain the abode of Lord Vishnu. (Gita-mahatmya 1)

gitadhyayana-shilasya
pranayama-parasya ca
naivasanti hi papani
purva-janma-kritani ca

"If one reads Bhagavad-gita very sincerely and with all seriousness, then by the grace of the Lord the reactions of his past misdeeds will not act upon him." (Gita-mahatmya 2)

mala-nirmocanampumsam
jala-snanam dine dine
sakridgitamrita-snanam
samsara-mala-nashanam

"One may cleanse himself daily by taking a bath in water, but if one takes a bath even once in the sacred Ganges water of Bhagavad-gita, for him the dirt of material life is altogether vanquished." (Gita-mahatmya 3)

gitasu-gitakartavya
kimanyaihshastra-vistaraih
yasvayampadmanabhasya
mukha-padmadvinihsrita

Because Bhagavad-gita is spoken by the Supreme Personality of Godhead, one need not read any other Vedic literature. One need only attentively and regularly hear and read Bhagavad-gita. This one book, Bhagavad-gita, is suficient because it is the essence of all Vedic literatures and especially because it is spoken by the Supreme Personality of Godhead. (Gita-mahatmya 4)

As it is said:

bharatamrita-sarvasvam
vishnu-vaktradvinihsritam
gita-gaìgodakampitva
punarjanmanavidyate

"One who drinks the water of the Ganges attains salvation, so what to speak of one who drinks the nectar of Bhagavad-gita? Bhagavad-gita is the essential nectar of the Mahabharata, and it is spoken by Lord Krishna Himself, the original Vishnu." (Gita-mahatmya 5)

sarvopanishadogavo
dogdhagopala-nandanah
parthovatsahsu-dhirbhokta
dugdhamgitamritammahat

"This Gitopanishad, Bhagavad-gita, the essence of all the Upanishads, is just like a cow, and Lord Krishna, who is famous as a cowherd boy, is milking this cow. Arjuna is just like a calf, and learned scholars and pure devotees are to drink the nectarean milk of Bhagavad-gita." (Gita-mahatmya 6)

ekamshastramdevaki-putra-gitam
eko devo devaki-putraeva
eko mantras tasyanamaniyani
karmapyekamtasyadevasyaseva

(Gita-mahatmya 7)

In this present day, people are very much eager to have one scripture, one God, one religion, and one occupation. Therefore, let there be one scripture only-Bhagavad-gita. Let there be one God for the whole world- Sri Krishna, and one mantra, one prayer—the chanting of His name: Hare Krishna, Hare Krishna, Krishna Krishna, Hare Hare/ Hare Rama, Hare Rama, Rama Rama, Hare Hare and let there be one work only—the service unto Him.

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