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Namrata Ka Mahatva

नम्रता के महत्व पर मंथन

 

  • शास्त्र हमें नम्रता का महत्व बताते है, परन्तु उसे प्राप्त करना इतना चुनौतीपूर्ण  क्यों  होता है ?

अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक शेक्सपीयर ने अपनी पुस्तक हैमलेट में लिखा है हे भगवान! “मैं एक अखरोट के छिलके में कैद हूं, परंतु यदि मुझे बुरे सपने नहीं आते तो कदाचित मैं स्वयं को असीमित आकाश का राजा मान बैठता |” हम स्वयं को बहुत बड़ा मानते हुए भ्रम में जीते और उपरोक्त पंक्तियां उस भ्रम को सारांश में प्रस्तुत करती हैं। अक्सर मैं भी अपने ज्ञान और महत्व को लेकर भ्रमित हो जाता हूं और उसी भ्रम को झकझोरने  के लिए मैंने इन पंक्तियों को यहां उद्धृत  किया है |

मनुष्य का स्वभाव है कि वह वास्तव में जितना जानता है स्वयं को उससे कहीं अधिक ज्ञानी मानता है |आप जितना अधिक जान जाएंगे उतना आपको लगेगा कि आप नहीं जानते हैं | यह सिद्धांत मानवीय कार्य अथवा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र पर लागू होता है भले ही वह वैज्ञानिक हो, धार्मिक हो अथवा व्यावसायिक हो |

हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि संसार में ऐसे अनेक विषय हैं जिनकी हमें  लेशमात्र  भी जानकारी नहीं है | हमने अब तक जितना भी ज्ञान अर्जित  किया है, वह हमारे अज्ञान की तुलना में अत्यंत तुच्छ है। भले ही हम कितने भी बड़े विद्वान या सफल व्यक्ति क्यों न हो, विरले लोग ही इस तध्य को सच्चे मन से स्वीकार कर पाते हैं। हम तो ऐसे ढ़ीठ हैं कि उन विषयों में भी अपनी दक्षता का दावा करते हैं जिनका हमें कोई ज्ञान नहीं है। इस सत्य को स्वीकार करने के लिए बहुत मनोबल की आवश्यकता पड़ती है।

वास्तविकता यह है कि जितना अधिक हम समझने लगते हैं कि हम नहीं जानते उतना अधिक हम जानने लग जाते हैं। जितना अधिक हम जानने लगते हैं उतना अधिक समझने लगते हैं कि हम नहीं जानते। प्राय: हम सभी मिथ्या विश्वास में जीते हैं। इस मिथ्या विश्वास को उन नास्तिकों में देखा जा सकता है जो दावा करते हैं कि न कोई परमेश्वर है और न ही आत्मा जैसी कोई वस्तु है। कट्टरवादी भी मिथ्या विश्वास से ग्रस्त होकर दावा करते हैं कि उनसे बेहतर भगवान को कोई नहीं समझ सकता।

सामान्यतया हम सबके मन तथा  हृदयो में गंदगी जमी है | इसे अनर्थ कहा जाता है |और इसके फलस्वरूप हम उद्दंड व्यवहार करते हैं और स्वयं तथा दूसरों का अहित करते हैं | हम सभी मिथ्या अहंकार से ग्रस्त होकर अपने झूठी पहचान लेकर इस संसार में भ्रमण करते हुए आजीवन इस झूठी पहचान को आकार देते हैं और मृत्यु के बाद भी इसे अपने साथ अन्य शरीरों में ले जाते हैं |परंतु इस भौतिक जगत की अन्य वस्तुओं के साथ यह भी अस्थाई है |

नम्रता सदैव कारगर होती है। यदि एक साधु लोगों के ऊपर खड़ा होना चाहता है तो उसे उनके नीचे खड़े होकर उपदेश देने चाहिए। यदि वह लोगों का नेतृत्व करना चाहते है तो उसे पीछे से उनका अनुगमन करना चाहिए  | देखने पर नेतृत्व व नम्रता दोनों  विरोधाभासी लगते हैं परंतु ज्ञान भरे शास्त्रों तथा प्रसंगों के अनुसार दोनों में गहरा संबंध है | उदाहरण  के तौर पर अमेरिकी नौसेना में एक नियम है कि कि वह उल्टे क्रम  में भोजन करते हैं और सेनापति सबसे अंत में भोजन करता है | यह नियम कहीं लिखा नहीं गया है परंतु सदियों से इसका पालन होता आ रहा है | यह भी एक प्रकार की नम्रता  है जो नेतृत्व तथा चरित्र के गुणों को प्रदर्शित करती है |

सच्ची नम्रता  का अर्थ स्वयं से घृणा करना नहीं है |अपनी सीमितताओ को समझना ही सच्ची नम्रता है | हमारे शास्त्रों में नम्रता के अनेकों उदाहरण हैं ,यहां तक कि स्वयं भगवान चैतन्य महाप्रभु एक भक्त के रूप में अवतरित होकर नम्रता के महत्व का आदर्श स्थापित करते हैं | श्री चैतन्य चरितामृत में वे अनेक बार अपनी भगवत्ता तथा ज्ञान को अस्वीकार करते हैं |और स्वयं को मूर्ख तथा आडम्बरी कहते है | श्रीमद भागवतम में अनेक देवताओं के उदाहरण हैं जिन्हें अपने जीवन में छोटेपन का अनुभव हुआ। ब्रह्माजी द्वारा भगवान श्री कृष्ण को भ्रमित करने का प्रयास और अततः इस निष्कर्ष पर पहुंचना की असंख्य ब्रहमाओं  में उनका स्थान कितना तुच्छ है । ये सब कथाएँ  हमें आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करने के लिए नम्रता का प्रयास करने  के लिए प्रेरित करती हैं |

Vidhyasagar Nimai Dasa

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Vidyasagar Nimai Dasa has been a full-time missionary since 2003, devoting his life to spreading the teachings of Krishna Consciousness. With a deep love for Vedic scriptures, he immerses himself in reading and studying them, engaging in elaborate discussions to delve into their profound wisdom. Fluent in Hindi and Sanskrit. Vidyasagar Nimai Dasa possesses a strong command over these languages, enabling him to connect with a diverse range of individuals and effectively convey the teachings of Krishna Consciousness. His extensive knowledge of the scriptures and his enthusiastic preaching make him a vibrant and inspiring presence at the Hare Krishna Movement in Ahmedabad.