बृहन नरसिम्ह पुराण में इस प्रकार उल्लेखित है : भक्त प्रह्लाद को भगवान् नरसिम्ह देव से यह जानने की जिज्ञासा हुई कि कैसे उनके हृदय में भगवान् नरसिम्ह देव के प्रति इतनी गहन भक्ति उत्पन्न हुई है ? नरसिम्ह देव ने उत्तर दिया,
“ प्राचीन कल में अवन्तिपुर (वर्तमान उज्जैन) में वासु शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जो शास्त्रों में अत्यंत निपुण था । उसकी पत्नी सुशीला अपने शील स्वभाव और अचल पतिव्रत के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्द थी । वासु शर्मा ने सुशीला के द्वारा पाँच पुत्रों को जन्म दिया । पहले चार पुत्र वेदों में पारंगत, सदाचारी, धर्म परायण और अपने पिता के प्रति आज्ञाकारी थे । किन्तु तुम, जो सबसे छोटे पुत्र थे, एक वैश्या के प्रति आसक्त होकर अपना चरित्र खो बैठे । तुम वासुदेव नाम से जाने जाते थे । उस वैश्या की संगती में तुम्हारा सदाचार नष्ट हो गया था । नरसिंह चतुर्दशी की तिथि को उस वैश्या के साथ तुम्हारा विवाद हो गया और तुम दोनों पूरी रात जागते रहे और अनजाने में तुम दोनों ने उपवास भी किया । इसलिए तुम दोनों को नरसिंह चतुर्दशी के व्रत पालन का फल प्राप्त हुआ । वह वैश्या स्वर्गलोक में जाकर एक अप्सरा के रूप में आनंद उठाने लगी और फिर मेरी प्रिय भक्तिन बनी । तुम हिरण्यकश्यप के पुत्र के रूप में जन्म लेकर मेरे भक्त बने । इस व्रत का पालन करके ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता कि शक्ति मिली है और शिव को तीनों लोकों का संहार करने की ताकत भी इसी व्रत से मिली है । अन्य लोग भी सभी प्रकार की शक्तियाँ और मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए नरसिंह चतुर्दशी के व्रत का पालन करते हैं ।